03 December 2007

Kya kahun

आक्रोश से भरी हूँ मैं
तू ही बता
किस की यह खता
किसे ठेरौं अपना गुनेहगार?

क्यूँ ना दोष दूँ
उस खुदा को
जिसके हाथों में सब कुछ हो कर भी
वो कुछ नहीं करता
अपने ही बंदों के लिए

क्या खूब तमाशा है यार ज़िन्दगी भी
जब तक अपने ख्वाबों को
उस खुदा की मोहर न लगे
वो ख्वाब ही रहते हैं
और एक दिन अचानक
एक पल में वो उन्हें भी
चकनाचूर कर देता है
हर उम्मीद से नाता तोड़ देता है
और छोड़ देता है
इस कदर तड़पने के लिए
कि सांस लेना भी भरी हो जाता है!!

ज़िन्दगी इस कदर बेबस हो जाती है
कि हर सांस से नफरत हो जाती है

हर पल आँखों के सामने
टूटे हुए सपने के टुकड़े ही नज़र आते हैं

कोई राह नहीं दिखती
कोई मंजिल नहीं दिखती
बस दिखता है तो
एक गुमनाम अँधेरा
जिसका न आदि न अंत...

इसी अँधेरे में खोने जाने की तमन्ना है
पर मुझमे इतनी भी शक्ति नहीं
कि छोड़ दूँ उन सबको
जिन्होंने बाँध रखा है मुझे
कई सालों से अपने दामन से
किस बात की सजा दूँ उन्हें
जो यह भी नहीं जानते
कि कई दिनों से मुस्कुराई नहीं
उनकी यह बेटी!

फिर भी इस दिल को जीने की कोई ठोस वजह नहीं मिलती
फिर भी जी रही हूँ मैं
जानते हो क्यूँ?

क्यूंकि मेरी यह साँसे भी
मेरी अपनी नहीं
अमानत हैं उस खुदा की
जिसने गिनती की साँसे दी हैं!

नहीं माँगना उससे अब कुछ भी
छीन ले अब जो चाहे
कुछ बाकि नहीं मेरे पास अब
मेरी इन साँसों के अलावा
और मेरे लिए यह सिर्फ
बोझ हैं
जो उठाना है मुझे अपनी मौत तक!

अलविदा ज़िन्दगी
तुजेह तो जी चुके
अब देखें ज़रा
जीते जी मरना क्या होता है!!!

4 comments:

mnm said...

yaar poem is too good........... but muje 1 baat bta k kitna roi thi ise likhte time???

Anonymous said...

hey..i cant read hindi.'(

diksha Ohri said...

hey...nidhi...dis no wonder u write well....bt this piece is just beautiful....and I can understnd whn u feel...d words just seem to flow.....hmm....nice...kepp it up...but hey...ders alwz more to life....more happiness, more sunshine sumwhere hidden nehind the dark clouds...alwz live wid a hope....and m sure u will love the pain....judos to ur emotions...I respect them....

डाॅ रामजी गिरि said...

बहुत ही तीव्र और उद्वेलित भावनाए है इस कविता में...
बहुत सुन्दर लिखा है आपने .

खुदा से मेरी भी नहीं बनाती..

"इतनी बेरहमी,बेशर्मी,कत्ले-आम ,
कैसे करे खुदा तेरा एहतराम;
तमाशा क्यों करे है सरे-आम।"